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बुद्धि , बुद्धि का स्वरूप, बुद्धि के कार्य​, बुद्धि को चलाने वाला कौन​, बुद्धि के प्रकार, बुद्धि बढ़ाने के उपाय

बुद्धि (Intellect)

बुद्धि कहते ही हमारे ध्यान में सिर में स्थित मस्तिष्क आ जाता है। यह मस्तिष्क तो स्थूल बुद्धि है। सूक्ष्म बुद्धि यानी विवेक, जो योग्य और अयोग्य का निर्णय करती है, वह दिखाई नहीं देती। शुद्ध बुद्धि सूक्ष्म विषयों का भी ज्ञान प्राप्त कर सकती हैं। बुद्धि का कार्य ज्ञान प्राप्त करना है। यह वस्तु उपयोगी है और यह हानिकारक है, यह निर्णय करना है। इसलिए इसे टेस्टर भी कहा जा सकता है।

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बुद्धि का स्वरूप (Nature of intellect)

बुद्धि भी जड़ अर्थात प्रकृति का ही एक विकार है। यह प्रकृति का पहला विकार है। यह विज्ञानमय कोश के द्वारा व्याख्यायित किया जाता है। बुद्धि चेतन नहीं है। सभी की बुद्धि स्वरूप से जड़ ही होती है। वैसे लोक व्यवहार में दार्शनिक चिंतन न होने के कारण मूर्ख लोगों की बुद्धि को जड़बुद्धि कहकर संबोधित किया जाता है। जबकि बुद्धि तो सभी की जड़ ही होती है चेतन नहीं होती। जो बुद्धिमान है उसकी भी बुद्धि जड़ ही होती है। बुद्धि भी मन की तरह एक यंत्र है, एक सूक्ष्म साधन है, जिसके द्वारा विभिन्न कार्य किए जाते हैं।

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बुद्धि के कार्य (Functions of the intellect)

अविकारी शुद्ध ज्ञान धारण करना बुद्धि का धर्म है। भक्ति, श्रद्धा, विश्वास आदि का स्थान बुद्धि है। भगवान महर्षि कपिल ने सांख्य दर्शन में कहा है  "अध्यवसायो बुद्धि:" अर्थात निश्चय करने वाले साधन का नाम बुद्धि है।
बुद्धि का कार्य है- निश्चय करना या निर्णय करना।

बुद्धि को चलाने वाला कौन? (Who wields the intellect?)

बुद्धि से कार्य लेने वाला चेतन अर्थात आत्मा ही है। 

बुद्धि जब बिगड़ जाती है तो वह सत्य को असत्य, भले को बुरा और बुरे को भला कह सकती है। जब बुद्धि अपवित्र हो जाती है तो उसे बुरे विचार प्रिय लगते हैं। अतः वह योग्य निर्णय नहीं ले पाती। बुद्धि पर आहार-विहार, दिनचर्या, आचार, विचार, संपत्ति और साधनों का अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है।

बुद्धि भी स्थूल और सूक्ष्म इन दो प्रकार की होती है। जो बुद्धि आत्मा के अधीन रहती है वही अच्छे निर्णय ले पाती है।

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बुद्धि के प्रकार (Types of intelligence)

बुद्धि के भी मेधा, प्रज्ञा, ऋतंभरा आदि कई प्रकार हैं। बुद्धि के उच्च स्तर पर सुख ही सुख है। स्थितप्रज्ञ एवं बुद्धिमान व्यक्तियों पर मान-अपमान और बाह्य जगत के व्यवहारों का कोई भी परिणाम नहीं होता।
बुद्धि के बिगड़ने से मानव पागल हो जाता है। अयोग्य व्यवहार करता है। बुरी संगति, बुरी पुस्तकों को पढ़ना, बुरे कर्म आदि के कारण और काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष आदि के प्रभाव से भी बुद्धि बिगड़ जाती है। मनोविकार, भाव, आवेगो का परिणाम भी बुद्धि पर होता है। बद्धकोष्ठता(constipation) और स्नायु तंत्र(nerve fiber block) का परिणाम भी बुद्धि पर होता है।
बुद्धि की स्थिरता ही स्वास्थ्य का लक्षण है।

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बुद्धि बढ़ाने के उपाय (Ways to increase intelligence)

सात्विक आहार एवं सदाचार का पालन करना, मनोवेग और इंद्रियों पर संयम रखना, परमात्मा की संगति में बैठना और अच्छे पुरुषों की सत्संगति में रहना, ईश्वर के नियमों में, उसके आदेश के अनुसार, उसकी प्रसन्नता के लिए चलना आदि क्रियाओं से बुद्धि पवित्र बन जाती है। इसके लिए प्राणायाम, ध्यान आदि विशेष लाभदायक है। प्राणायाम के कारण अशुद्धि का नाश होकर बुद्धि पवित्र हो जाती है। प्रकृति साधन, जीवात्मा साधक और परमात्मा साध्य है यह पूरी तरह समझ लेना। कौन किसके लिए है इसका बोध होना चाहिए। यह जानने का महान कार्य बुद्धि का ही है। बुद्धि दुःख टालने का बहुत बड़ा कार्य करती है। इसलिए बुद्धि को स्वस्थ एवं सुखी रखने के लिए नियमों का कठोरता से पालन करना ही चाहिए। इसे ही धर्म कहते हैं। अपनी बुद्धि को धर्म में ही लगाना चाहिए। अधर्म से बचाना चाहिए। इसके अलावा प्रतिदिन स्वाध्याय व सत्संग किसी न किसी रूप में अवश्य करना चाहिए।
गायत्री मंत्र के अर्थपूर्वक जप से भी बुद्धि शुद्ध व सूक्ष्म हो जाती है इसमें तो कोई संदेह नहीं है।

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