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नेत्रहीन मनुष्य का अज्ञात पथ पर चलने जैसा है, बिना ज्ञान के ईश्वर का ध्यान।

  • लेखक की तस्वीर: Acharya Lokendra
    Acharya Lokendra
  • 26 दिस॰ 2022
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 3 जन॰ 2023


🌷परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।


सज्जनों की रक्षा करने के लिए और दुर्जनों का विनाश करने के लिए परमेश्वर हर युग में, हर समय संभव रहता है, अर्थात् हमेशा उपस्थित ही है।

इस श्रृंखला में अभी तक आप पढ रहे थे कि पहले ऑंखें खोले, फिर ऑंखें बंद करें तब खोज शुरू करें..

अब आगे...


ईश्वर के अस्तित्व को संसार की सारी रचना बता रही हैं।


🌷उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतव:। दृशे विश्वाय सूर्यम्।। (यजुर्वेद ३३/३१)

उस सर्वज्ञ और सर्वत्र विद्यमान, स्वयं ज्ञानस्वरूप, सुखदाता ईश्वर को यह सारा ब्रह्माण्ड बता रहा है।

यह महान रचना ही रचियता का संकेत कर रही है। यह व्यवस्थित कार्य, जगत ही व्यवस्थापक की ओर संकेत कर रहा है।


इस रचना को तो सीधे ऑंखें खोल कर ही देखें और गहराई से अध्ययन विचार करें।


आप समझने से पहले ही ऑंखें बंद मत कीजिए। और ध्यान का अर्थ भी ऑंखें बंद करना नहीं, बल्कि ऑंखें खोलना है, बंद तो पहले से ही है। अपनी ज्ञान चक्षुओं को पहले खोले फिर ध्यान की गहराई में जाने का रास्ता ज्ञात होगा, तो अंदर की यात्रा आरंभ हो सकती है। बिना रास्ता पता किए ही आप चलकर लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते। ज्ञान के बिना जो ध्यान लगाकर परमात्मा को जानने का प्रयत्न कर रहे हैं उनका समय और शक्ति व्यर्थ जाने वाली है। जब तक ध्येय(ईश्वर), ध्याता(उपासक) और ध्यान(क्रिया) के स्वरूप को शाब्दिक रूप से भी नहीं जाना तब तक कल्पना कर सकते हैं, स्वप्न देख सकते हैं, लेकिन ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं कर सकते। इतना सरल उपाय कोई भी नहीं कि बिना ज्ञान के कोई ईश्वर का ध्यान कर सके या अन्य को करा सकें।


संसार के सामान्य जन, आध्यात्मिक विद्वान और आधुनिक युग के भौतिक विज्ञानी सभी व्यक्ति इस बात पर एक मत है कि बिना कर्ता के क्रिया नहीं होती और क्रिया के बिना कर्म या कार्य या निर्माण नहीं होता।


🌷यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते,येन जातानि जीवन्ति.. (तैत्तिरीय उपनिषद् ३/१)

जिसके बल व सामर्थ्य से प्राणी जन्मते है, जन्म लेकर कुछ समय जीवित रहते हैं और अन्त में मरकर जिस सर्वव्यापी के अंदर समा जाते हैं, उस महान परमेश्वर को जो कि सबका उत्पन्न करने वाला, धारण करने वाला और विनाशक है। हे मनुष्यों! तुमको उसे जानने पहचानने की इच्छा करनी चाहिए और कल्याण के लिए उसकी उपासना भक्ति करनी चाहिए।


🌷जन्माद्यस्य यत:। (वेदान्त १/१/२)

जिसके द्वारा जन्म मृत्यु होते हैं, सृष्टि व प्रलय होते हैं। वह ब्रह्म (ईश्वर)है।


🌷न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्र तारकम् नेमा विद्युतो भान्ति कुत अयं अग्नि:। (कठोपनिषद्२/५/१५)

उस ईश्वर को सूर्य, चंद्रमा, तारे, बिजली और अग्नि कोई भी दिखा नहीं सकता। किंतु उसी के दिए हुए प्रकाश से यह सब सूर्य आदि भी प्रकाशित हो रहे हैं अर्थात चमक रहे हैं।


भला ऑंखें उसको क्या दिखाएँ जो आँखों के पीछे से देखता है। जो सारे संसार को चक्षु देता है। चक्षु उसे नहीं दिखा सकते। स्वयं की आँखों को देखने के लिए भी दर्पण की सहायता लेनी पड़ती है।


अब प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य के समान स्थूल शरीर न होते हुए भी ईश्वर बिना इंद्रियों के, बिना शरीर के, कैसे रक्षा करता है?


शेष आगे...

आचार्य लोकेन्द्र:

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1 टिप्पणी


Reena Chaudhary
Reena Chaudhary
26 दिस॰ 2022

ओम आचार्य जी नमस्ते

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